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13 Jan 2018 · 1 min read

आशा

आशाओं की डोर हो गयी काफी पतली
बस टूटन की प्यास बसी है,अँखियन में।
तिलकुट मधुर हो और कंकड़ भी मिले ना उसमें
दही शुद्ध हो,दूध पाक,सब डूबें उसमें।
जी भर कर आनंद मनाएँ,रहे नशा सब अँखियन में
राम,रहीम एक दिख जाएँ,अपने दिल की बस्ती में
संक्रमण-काल में बचे रहें हम,टिप्पणी-टीका से दूर रहें
हँसता भारत रहे हमारा,हम गर्जन करते विचरें।।
~~~अनिल मिश्र,प्रकाशित

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