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3 Jan 2018 · 1 min read

सूरज निकल रहा था कि नींद आ गई मुझे!!ग़ज़ल

प्रेम का धागा बाँधा आपने,उनकी याद तड़पा गयी मुझे
बरसो बाद देखा हमने,यूँ ही आँखे छलका गयी मुझे

सहमे सहमे से रहते थे वो,ख्वाबो में मुझे सोचकर
हकीकत में दीदार कराकर वो फुसला गई मुझे

मुझे छेड़ते,मुझसे खेलते,मुझे तड़पाते
यही अदा उनकी बिखरा गई मुझे

सब भर रही कुछ, यूँ उल्फ़तों का सबब
सूरज निकल रहा था कि नींद आ गई मुझे

इक तूफ़ान उमड़ रहा था,दिल के सहारा में अब
बंजर ज़मीन पे दस्तक दी,और वो महका गई मुझे

जिंदगी बन कर ऐसे,वो मेरे करीब आये
साँसों का कर्जदार करके,यादो में दफना गई मुझे

वो शुर्ख गुलाब काँटो पे ऐसे ही रहा
जिंदगी में मुहब्बत की सीख सिखा गई मुझे

सब पूछते हैं मुझसे यूँ हिचकियों का सबब
याद उनकी आयी और यूँ तड़पा गई मुझे

मुकद्दर से मिलते हैं आकिब’वो दूर जाने वाले
फर्श पे बैठ कर,अर्श के ख्वाब दिखा गई मुझे

गिरह का शेर

वो चंचल शोख हवा थी,आयी और गुज़र गई
सूरज निकल रहा था कि नींद आ गई मुझे

-आकिब जावेद

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