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22 Dec 2017 · 1 min read

◆गुजरते लम्हे◆

गुजरते लम्हे

◆◆ गुजरते लम्हो को न रोक पाती हु मैं,,,
कभी गम, कभी ख़ुशियाँ संग इनके पाती हूँ मैं।

◆◆ दिनरात,साल महीने गुजर रहे एक एक कर,,
अपनी यादों का जाल बुन जाती हूँ मैं।

◆◆राही बीते पलो को भूल आंगे बढ़ लेता है,,
मंजिल हैआंगे सोच मुस्करा लेती हूँ मैं ।

◆◆समय की गाड़ी चली जा रही रफ्तार से,,
रेत भी फिसल जाती जब मुट्ठी बांध लेती हूँ मैं।

◆◆खुशियों के लम्हे याद आते है बहुत,,
आज भी इन्तेजार में उनकी राह तकजाती हुँ मैं।

◆◆ मनचाहे सांझ ढले आना तूम नदियाँ किनारे,,
बातें ये सोच रैना याद मैं गुजार देती हूँ मैं।

गायत्री सोनू जैन मंदसौर

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