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20 Dec 2017 · 1 min read

“गज़ल/गीतिका”

“गज़ल/गीतिका”

रोज मनाते बैठ दिवाली बचपन लाड़ दुलार सखी
नन्हें हाथों रंग की प्याली दीया जले कतार सखी
नीले पीले लाल बसंती हर फूल खिले अपनी डाली
संग खेलना संग खुशाली नाहीं कोई दरार सखी॥

चौक पुराते व्याह रचाते गुड्डे गुड्डी की मेहँदी
हल्दी लेपन दूल्हा लाली मंडप का संसार सखी॥

आते जाते घर बाराती तकते रुक सुंदर शोभा
चिड़िया जब उड़ती डाली से बहते आँसू धार सखी॥

वापस कब आ पाती बेटी जाकर अपने धाम से
यादों की घड़ियाँ मतवाली अपने छाँव विहार सखी॥

छूटेगी प्रिय गली हमारी कभी न मन अकुलाया री
बढ़ती रहीं उमर दिन आली छाने लगी बहार सखी॥

रे “गौतम” कब आई होली गई दिवाली झूम के
रंगोली मेरे द्वार की निराली रही हर बार सखी॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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