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2 Dec 2017 · 1 min read

हम और वे

हरि गीतिका छंद

जो तालियों की गड़गड़ाहट से ,गगन तक छा रहे।
जो गाय गंगा और, गायत्री की महिमा गा रहे ।
जो जाति बंधन वर्ग बंधन ,राजनीति में बंधे
जिनके निशाने तीर बनकर भावनाओं पर सधे
जो एकता का राग गाते , किंतु कट्टर हैं बड़े
है कथनी करनी भिन्न लगते स्वर्ण में हीरे जड़े
वे साथ में मिलकर हमारे जाने क्या क्या कर रहे
बेरोक अपने खेत की हरियाली सारी चर रहे
उनके किसी भी क्षेत्र में जाकर ना कुछ भी पाओगे
अपमान लेकर हाथ में डंडे से खाकर आओगे
वे राहू रावण कालनेमि से बनाए भेष हैं
उनके दिलों में सिर्फ ठगने मात्र के उद्देश्य हैं
देखो सुनो समझो जरा वे संप्रदायी कौन है
हम रोज जाते हैं ठगाए किंतु अब तक मौन है

गुरु सक्सेना नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश)

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 645 Views
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