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1 Dec 2017 · 1 min read

मुक्तक

आज वो मेरे नाम की, मेंहदी लगाए बैठी थी।
पहुंचा नहिं था ,वो खुद को सजाए बैठी थी।
प्यार मेरा भीख में मिल जाए इस उम्मीद में-
वो अपने हाथों में कासा लगाए बैठी थी।
प्रो० राहुल प्रताप सिंह

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