Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
30 Nov 2017 · 1 min read

आख़िर वो शायर टूट गया......

वो कलम टूट गया, वो शायर रूठ गया,
अपने ही एक रूप में, एक शायर डूब गया,

क्या वजूद रहा उस शायर का इन नन्ही पलकों के आगे,
आखिर खुद के पैगामो पर उसका वजूद भूल गया…
आख़िर वो शायर टूट गया।

कहीं छुपाया होगा उसने तो कहीं रंग दिखाया भी होंगा,
जब उसके ही रंगों में कोई उसको ही भूल गया….
आख़िर वो शायर टूट गया।

वो कलम टूट गया, वो शायर रूठ गया,
अपने ही एक रूप में, एक शायर डूब गया।

शब्दों का वो घर उसका बहुत उम्मीदों से बना होगा,
फिर घर में रहने वाला ही मालिक को भूल गया….
आख़िर वो शायर टूट गया।

अक्षर अक्षर जोड़ उसने शब्द खड़ा किया था,
जब उसके शब्दों का कोई मोल लगा गया….
आख़िर वो शायर टूट गया।

वो कलम टूट गया, वो शायर रूठ गया,
अपने ही एक रूप में, एक शायर डूब गया,

वो शब्द तब टूट गया जब अल्फ़ाज़ भीग गया,
वो कलम तब बिखर गया जब शायर का नाम भूल गया…
आख़िर वो शायर टूट गया।

बहुत कुछ खो कर, एक रूप गढ़ा था उसने,
फिर कोई खुद के ही शब्दों से उसको ही तोड़ दिया…
आख़िर वो शायर टूट गया।

वो कलम टूट गया, वो शायर रूठ गया,
अपने ही एक रूप में, एक शायर डूब गया,
–सीरवी प्रकाश पंवार

Loading...