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27 Nov 2017 · 1 min read

मैं घर हूँ

मैं हूँ
वो बस स्टॉप
जिसे बारिश के बाद
तुम छोड़ जाते हो

मैं हूँ
वो समंदर का किनारा
जिसे सूरज ढलने के बाद
तुम छोड़ जाते हो

मैं हूँ
वो दवा की शीशी
जिसे दर्द ख़त्म हो जाने पर
तुम छोड़ जाते हो

मैं हूँ
वो सागर का पानी
जिसे किनारे के पार
तुम छोड़ जाते हो

मैं घर हूँ
तुम हो एक बंजारा
और हमेशा की तरह मुझे
तुम छोड़ जाते हो

–प्रतीक

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