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26 Nov 2017 · 1 min read

" ---------------------------------------- वक़्त आजमाना चाहता है " !!

वो कहाँ किसी की मानता है !
वक़्त आजमाना जानता है !!

झण्डे , नारे , जोश ,जनसमूह !
नेता ठगने की ठानता है !!

नये नये वादे , इरादे हैं !
यहां हर कोई बखानता है !!

सोच है स्वतंत्र है , समानता !
संविधान की यह महानता है !!

साये आतंक के दिखने लगे !
आज कौन किस की मानता है !!

बलिदान के चर्चे करते रहे !
राजनीति यहां अज्ञानता है !!

झूंठ है फरेब है पसरा सा !
ठगने की मन क्यों ठानता है !!

खुसबू बिखेर दें आसमां में !
भेद गर भूले समानता है !!

बृज व्यास

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