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23 Nov 2017 · 1 min read

राहगीर

शब्द – मुसाफिर

हे पंथी,राही,अथक राहगीर पथ भूल न जाना पथिक कहीं ।
सुन पथ में बहुत हैं तीक्ष्ण शूल,
तो कष्ट अत्यधिक होंगे हीं।
लता पुष्प वल्लरियां चाहे हो न हों,
बाधा और संकट होंगे ही ।
हे पंथी,राही, अथक राहगीर पथ भूल न जाना पथिक कहीं ।
माना प्रवासी तुम दूर मंजिल से,
पर मान हार कभी रुकना नहीं ।
चाहे बीते यौवन इंतज़ार में,
पर व्याकुल हो तुम झुकना नहीं।
हे पंथी,राही, अथक राहगीर पथ भूल न जाना पथिक कहीं ।
मौन हो जाए चाहे वीणा मधुवन की,
मुरझाने न देना कली कभी मन की ।
चाहे बजे बांसुरी नींद भरी
चाहे भोर पर हो सांझ उतरी ।
हे पंथी,राही,अथक राहगीर पथ भूल न जाना पथिक कहीं ।
नहीं बुझना पथिक थकान से थककर,
इस नीरस उदास जीवन के पथ पर ।
पतझर गर जो छाए बसंत के ऊपर,
बता सुमन खिलेंगे फिर से क्यूकर।
सुन, चाहे सपनों में ही,
शेष रह जाए बस सुधियां हीं चंदन वन की ।
हे पंथी,राही,अथक राहगीर पथ भूल न जाना पथिक कहीं ।
नीलम तू कठिन-कर्म पगडंडी पर ,
अपना उर उन्मुख करना नहीं।
सफलता तुमको मिले न मिले,
मन में अपने दुख भरना नहीं।
सुन झूठे रिश्तों की उलझन में,
कर्तव्य कर्म सुन भूलना नहीं।
चाहे छाएं दुख बादल स्याह अति,
गंतव्य कभी तू भूलना नहीं।
हे पंथी,राही, अथक राहगीर पथ भूल न जाना पथिक कहीं ।

नीलम शर्मा

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