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18 Nov 2017 · 1 min read

आस!

चाँद को चांदनी की आस
धरा को नभ की आस
दिन को रात की आस
अंधेरे को उजाले की आस
पंछी को चलने की आस
इंसा को उड़ने की आस
प्यासे को पानी की आस
भूखे को खाने की आस
नंगे को कपडे की आस
बेघर को घर की आस
कुछ के पाने की आस
कुछ की खोने की आस
प्रभु के होने की आस
प्रभु होता है पास
इस दुनिया में जीना हैं गर
तो रखो खुद पे आस
इसी आस पे सब पास हैं
आस पर ही सब खास हैं!!

®आकिब जावेद

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