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15 Nov 2017 · 1 min read

निखरता जा रहा ..

बढ़ा दी है चौकसी पहले से ज्यादा
अब दबे पाँव जाना है लाजमी

कैसे मन को समझाऊँ
नादान है कैसे इसे बताऊँ

मत उलझ उसकी बिखरी अल्कों में
गहरा राज छुपा है उसकी पलकों में

अस्तित्व अपना मिटता जा रहा
मन उसके रूप पर सिमटता जा रहा

कैसा सफर है कैसा ये रिश्ता
दूरियों से और भी निखरता जा रहा

शालिनी साहू
ऊँचाहार,रायबरेली(उ0प्र0)

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