Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
15 Nov 2017 · 1 min read

इंसानियत से इंसान पैदा होते है !

एक बूंद हूँ !
बरसात की !
मोती बनना मेरी फिदरत !
गर मिल जाए,
किसी सीपी का मुख खुला !

मनका भी हूँ… धागा भी !
गर मिल जाए कोई पिरोवण-हारा,
माला हूँ मैं !

पर श्री श्री नहीं ,
क्योंकि हर जीव-जैसी !
सौगात हूँ मैं…!

पारस हूँ पर गुरु नहीं,
समागम की क्षमता से,
हो जाता है उजियाला,

इंसानियत से इंसान पैदा होते हैं,
और इंसान से इंसानियत !
भेद मनुष्य की चालाकी,
महेंद्र हो सकता है !
सिर्फ खुदी को जानन-हारा !

Loading...