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14 Nov 2017 · 1 min read

जग उठेगा खिल

कितनी प्यारी प्राकृति,
यही लिखेंगे एक कृति,
दूर दूर तक फैली शांति,
दूर हो गई सारी अशांति,
कल कल करता जल बहता,
लगता है कुछ हमसे कहता,
छूकर निकली जब ठंडी बयार,
लगा ऐसे, जैसे मिला वो यार,
मन भी है आज बड़ा मगन,
देख रहा है ऊपर से गगन,
पर………………………….
निज स्वार्थ से सूख रहे रिश्ते,
गिरा रहे शूल अपने ही रास्ते,
जल जंगल का हो रहा पतन,
अब भी समय कर ले जतन,
लगा एक पेड़ तू हर साल,
सुत समान तू उसको पाल,
फिर देख……………….
जग उठेगा खिल,
होगा प्रसन्न दिल,
।।।जेपीएल।।।

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