Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
14 Nov 2017 · 1 min read

प्यार का रोग ये लगा कब का

प्यार का रोग ये लगा कब का
दर्द बदले में भी मिला कब का

जिन्दगी समझा था जिसे अपनी
छोड़ वो ही हमें गया कब का

रँग गया रँग में वो जमाने के
भूल अपनी गया वफ़ा कब का

रह गये हम तो सोचते ही बस
कर चुका वो तो फैसला कब का

जान पाये नहीं अभी तक हम
वक़्त खुशियों से था भरा कब का

रोज करते थे अनगिनत बातें
हो गया खत्म सिलसिला कब का

‘अर्चना’ का असर हुआ शायद
पूरा सपना मेरा हुआ कब का

डॉ अर्चना गुप्ता
14-11-2017

Loading...