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13 Nov 2017 · 1 min read

आदमी खुद को ही छलने लगा है, हवाओं में ज़हर घुलने लगा है।

आदमी खुद को ही छलने लगा है,
हवाओं में ज़हर घुलने लगा है।***
पहुँचना चाँद तारों तक मुबारक बात है,
कलेजा भूमि का फटने लगा है
बाँधे नासिका देखो हमारी पीढियाँ घूमें,
यही सौग़ात है बाकी हमें दिखने लगा है
आदमी खुद को ही छलने लगा है,
हवाओं में ज़हर घुलने लगा है।***
बना डाले हैं हमने खूब सारे ईंट के जंगल,
किया पर्यावरण का नाश दो-दो हाथ कर दंगल
जल दूषित, हवा दूषित ज़मीं औ आसमां दूषित
अब तो खुद ही अपना आशियां जलने लगा है,
आदमी खुद को ही छलने लगा है,
हवाओं में ज़हर घुलने लगा है।***
दिन में रात हो जैसे तिमिर का नाश हो कैसे,
हमारी राजधानी को मिले आकाश अब कैसे,
वैश्विक ऊष्मायन दिन व दिन बढने लगा है,
हिमालय आग से गलने लगा है
आदमी खुद को ही छलने लगा है,
हवाओं में ज़हर घुलने लगा है।***

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