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13 Nov 2017 · 1 min read

माँ हिंदी की पुकार।

माँ हिंदी की पुकार।

नहीं लिखूंगा कुछ भी, आजकुछ भी नहीं सुनाने को,

फर्क नहीं पड़ता आहों से मेरी अंधे,बहरे, गुलामो को ।

ना मातृभूमि के हो सके, ना माँ के आँचल के,

वो क्या लाज रखेंगे मेरी, जो रख न सके घर आँगन के।

अपाहिज़ है खुद ही सोच जिनकी वो क्या देंगे सहारा मुझको,

खुद ही लाज बचाना होगा फिर दुबारा मुझको ।

संस्कृति सभ्यता उठो  जागो मेरे संतान,

संभालो खुद को बदल रहा है हिंदुस्तान।

सब रखवाले बने गये मतवाले ,कहीं

विलुप्त न हो जाये कदमो के निशान ।

#हिन्दी दिवस अवशेष

तेजस- एक साहित्य अभियंता ।

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