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28 Oct 2017 · 1 min read

नज़्म – तुम ही बोलो…

आज फिर तुमने, दिल मेरे पे, दस्तक दी है….
मेरे बालों में, तेरी उँगलियों ने, हरकत की है…
एक सिहरन सी, बदन मेरे में, लहराई है……
ठहरे पानी में हलचल ने ली अंगड़ाई है

है हवाओं का रुख भी, मेरी साँसों की तरह….
तेरे अहसास से धीमा सा, कभी तेज ज़रा…
झूल रहे पते लटके हुए, हवा से कुछ ऐसे…
वक़्त जाने का तेरा, सांस मेरी भटके जैसे….

लोग कहते हैं हम तुम से, जुदा रहते हैं…
एक दूसरे से अलग और ही, जहां रहते हैं…
आज तुम आयी हो, इन सब को,बता कर जाना…
प्यार मोहताज नहीं, बंधन का, बता कर जाना…

किस तरह इनसे कहूँ मैं, तुमसे रोज़ मिलता हूँ…
कब से हूँ तेरा किस जन्म से मैं यूं मिलता हूँ….
तुम ही बोलो क्या तुम थी जुदा, मुझसे कभी….
मेरी साँसों में नहीं और कहीं, बसी थी कभी…..

\
/सी.एम्. शर्मा

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