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20 Oct 2017 · 1 min read

मिल गये हैं ख़ुशी के ख़ज़ाने मुझे

मिल गये हैं ख़ुशी के ख़ज़ाने मुझे
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ये गरीबी लगी है डराने मुझे!
तंगदस्ती लगी है सताने मुझे!

वक़्त रुकता नहीं वो चला जा रहा,
मुफलिसी के सुनाते तराने मुझे!

नींद आती नहीं रात में भूख से,
चांद भी आ गया है चिढ़ाने मुझे!

छीन ली है अराज़ी ज़मींदार ने,
बेकसी आ गई है रुलाने मुझे!

हाथ बेटी के पीले नहीं कर सका,
शेख आने लगे हैं रिझाने मुझे!

ज़िन्दगी भर किया है बेगारी यहां,
आएगा कब मसीहा बचाने मुझे!

बात हक़ की बताने कहाँ जाऊँ मैं,
देख वो आ गये हैं मिटाने मुझे!

छोड़ कर साथ सारे चले जा चुके,
कौन आये यहाँ अब हँसाने मुझे!

क्या नसीबा लिखा है ख़ुदा ने मेरा,
कर्ज क्या क्या पड़ेंगे चुकाने मुझे!

चल पड़ा हूँ ख़ुदा जब तेरी राह मैं,
मिल गये हैं ख़ुशी के ख़ज़ाने मुझे!

©कुमार ठाकुर
07.10.2017

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