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16 Oct 2017 · 1 min read

मैं हाथ मिलाने का दस्तूर न हो जाऊं

ग़ज़ल

इतनी नवाज़िसों से मग़रूर-हो न जाऊं।
तेरे करम से मौला अब दूर हो न जाऊं।।

खंजर लिये फिरेंगे ये दोस्त मेरे अपने ।
मुझको यही है डर अब मशहूर हो न जाऊं।।

तस्वीर तुम करीने से मेरी तो बनाते ।
इतना ही रंग भरना बेनूर हो न जाऊं।।

क्यों इतनी मय पिलाता मुझको तू मेरे साकी।
तेरे ही मयकदे में अब चूर हो न जाऊं।।

शामिल किया खुशी में क्यों दूर हूँ मैं ग़म से।
मै हाथ बस मिलाऊं दस्तूर हो न जाऊं।।

इतना “अनीश”को भी मौला अता तू कर दे।
भूखे का पेट भर दू मजबूर हो न जाऊं।।

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