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16 Oct 2017 · 1 min read

तुम्हारी प्रतीक्षा

मैंने अपनी पूरी उम्र
कैद कर ली है
इन आंखों में

दिनों की गिनती
अर्थहीन लगती है अब

मैंने तो
बरस के बरस
इन आंखों के रास्ते
तुम्हारी प्रतीक्षा में
समर्पित कर दिए हैं

आशाओं का
तार-तार होना
अब
व्यथित नहीं करता मुझे
आदत-सी हो गई है
इन पथराई आंखों को
क्षितिज तक देखने की

और
तुम क्षितिज हो
इस सत्य का
आभास है मुझे

फिर भी न जाने क्यों
मैं अपनी सारी उम्र
आंखों के रास्ते
तुम्हारी प्रतीक्षा में
गुजार देना चाहता हूँ ।
-*-*-*
अशोक सोनी
-9406027423
भिलाई-छ.ग.।

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