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8 Oct 2017 · 1 min read

कौन सी सोच हमें उभार सकती है,

प्रतिष्ठा की ..चाह में,
स्वाभिमान को बहुत बड़ा स्थान है,

“नारद” सम “हरी” रूप जनता,
बनती एक से एक ..महान है,

जाने रखती ..कैसे अपना ध्यान है,
है कौन सी चीज उनमें …विशिष्ट,
इस बात पर जाता नहीं कभी..ध्यान है,

ढ़ोह रहे है ..बोझ ..दूसरों का,
कहते फिरते है बस “महात्मा” महान है,

जाने है उनके पास “परख”का
……कौन आधार है ?
फँसे है खुद सम्मोहन के जाल में,
कहते फिरते है आत्मा अजर-अमर , अविनाशी और महान है,
बस इस एक बात का रखते संपूर्ण ध्यान है,

कैसे ? हो …”निजता की खोज”
जाता नहीं कभी ..ध्यान ..उस ओर है ?

कहते फिरते है,बस “महात्मा” जी महान है,
बस रखते इतना-सा ध्यान है,

कैसे हो हमारी दुर्दशा दूर,
कैसे हो भेद खत्म जाति,धर्म,इमान में,

सच में “महात्मा जी”महान है,
पर गया नहीं ..ध्यान कभी..उस ओर है,
“महात्मा जी” क्यों ? महान है,

गर जान लेते सिर्फ इतनी-सी बात,
डॉ महेंद्र सिंह खालेटिया,
भारत-वर्ष विकासशील नहीं,
विकसित ,स्वावलम्बी साथ में अग्रणी होता,

डॉ महेंद्र सिंह खालेटिया,
महादेव क्लीनिक, मानेसर(हरियाणा)

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