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18 Sep 2017 · 1 min read

"आस का दीपक"

मेरा प्रथम प्रयास लघुकथा
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समय की चोट खाकर लता बहुत निराश हो चुकी थी। इस समय उसे किसी सहारे की तलाश थी, जो उसके असहाय शरीर को खड़ा होने में सहायता दे, किन्तु दुर्भाग्य!! उसे किसका सहारा था??
अचानक पुरवाई ने एक हुँकार भरी और एक गुलाब की डाली आई और उसके असहाय तन को अपने कोमल पल्लवों से सहला दिया । उसे लगा कि जैसे वो कह रही हो– “निराश मत हो, जिसने तुम्हे असहाय किया है वही कुदरत आज तुम्हारा साथ देगी ।दृष्टि उठाओ, देखो कोई है जो तुम्हे अपने आगोश में लेने के लिए आतुर है।अवसर का लाभ लो और वक्त का दामन थाम ले। इतना आभास होते ही लता ने देखा कि मेंहदी बार-बार उसके समीप आने का प्रयास कर रहा है।
लता ने लपक कर उसको बहों में भर लिया और इस तरह लिपट गयी, मानों दो प्रेमी प्रेमातुर होकर प्रेम का आनन्द ले रहे हों ।
निष्कर्ष– “निराशा छोड़ कर आशावान बनें ।आपका लक्ष्य आपकी प्रतीक्षा में है।
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)

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