Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
17 Sep 2017 · 1 min read

हमने गुरबत में भी दम साँसो में छिपा रखा था ।

गज़ल

हमने गुरबत में भी दम साँसो में छिपा रखा था ।
कतरे-कतरे पे स्याही का असर लगता था ।

यूँ तो देखी थी जमाने की रुसवाई हमने । खाली हाथों पे अंगार कोई जब रखता था ।

छलनी हो जाता था जिगर ,आँखों से अश्क बहता था ।
कोई जब वार लफ्जों से किया करता था ।

हमने गुरबत में भी दम साँसो में छिपा रखा था ।
कतरे-कतरे पे स्याही का असर लगता था ।

इस जमाने ने कभी कद्र न जानी मेरी ।
कूचे-कूचे पे सरे आम हर रोज लूटा करता था ।

हाथ पकड़ा नहीं ,संभाला किसी ने भी नहीं ।
अपने ही आप गिरा और उठा करता था ।

हमने गुरबत में भी दम साँसो में छिपा रखा था ।
कतरे-कतरे पर स्याही का असर लगता था ।

Loading...