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15 Sep 2017 · 1 min read

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इक सिवा सांस के क्या बाकी है
ज़िंदगी अब भी क्यूं सताती है

दरमिया अपने इक खलिश सी है
वास्ता ये ही एक बाकी है

ज़िंदगी की तमाम खुशियां भी
मैंने तेरी नज़र पे वारी है

खौफ हमको क्या जीने मरने का
संग यादो की जब पिटारी है

सोचते हैं तुम्हें बतायें क्या
आशिकी में भी जगहंसाई है

राजे दिल दिल में ही रहा हरदम
बात होठो को छू न पाई है

आखिरश सेज सज रही आंगन
संग अपने सभी ही साथी है

बाज आये हैं हम मुहब्बत से
हर जगह ही तो बेईमानी है

मिलके बिछड़े कभी मिलेंगे फिर
ज़िंदगी की यही कहानी है

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