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12 Sep 2017 · 1 min read

लोग क़रीब बुलाते है क्यों

लोग क़रीब बुलाते है क्यों
क़रीब बुलाकर दूर चले जाते है क्यों

ख़्वाब दिखा कर झूठे
हक़ीक़त में तोड़ जाते है क्यों

जब मरहम लगाना नही आता
तो जख्म दे जाते है क्यों

एहसान जताना ही था तो
एहसान में अपने दबाते है क्यों

आसमाँ से फ़लक तोड़ने की बाते कर
वादों से मुकर जाते है क्यों

अपना बता कर नींद में
पराया बना जाते है क्यों

सफर का हमसफ़र बनकर
राह में तन्हा छोड़ जाते है क्यों

बरसात के मौसम में
तिश्रगी बढाते है क्यों

बुझी हुई आग की आंच में
घी डाल कर अब भड़काते है क्यों

अपना बनाकर अक्सर
गैर हमको बताते है क्यों

आब की जुस्तज़ू में अब
तिश्रगी बढाते है क्यों

भूपेन्द्र रावत
12।09।3027

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