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11 Sep 2017 · 1 min read

एहसास

ग़ज़ल (बह्र – मुतदारिक मख़बून मुसक्किन महज़ूफ
अरकान-फेलुन *7 फे)

दिल में तेरी यादों का अब हरदम मेला लगता है।
फिर भी जाने क्यों मेरा दिल खाली खाली रहता है।।

सूखे पेड़ सभी चाहत के दिल अब सहरा लगता है।
फिर भी इसमें उम्मीदों का इक झरना तो बहता है।।

क्या होता है इंतजार का मतलव मैने अब समझा।
इक लम्हा भी अब तो जैसे एक बरष सा लगता है।।

मैने आईनों को भी तो झूठ दिखाते है देखा।
जब भी अपना चेहरा देखूं तेरा चेहरा दिखता है।।

माना अंधियारा फैला है चारों ओर “अनीश” यहां।
दिल के आंगन में यादों का इक दीपक तो जलता है।।
—अनीश शाह

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