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11 Sep 2017 · 1 min read

वो मुलाकात भी मुलाकात क्या थी

वो मुलाकात भी मुलाकात क्या थी
दिल में जब उसके जगह ही ना थी

वफ़ा की बात भी क्या करते थे
अब वो गमज़दा भी ना थी

गिरियां हो कर पुकारते रहे उनको
कल तक नम आँखों में अश्रु की जगह ना थी

गिरियां= रोते हुए, चीखते हुए

किनारा में तलाशता रहा उम्र भर
किनारों में अब जगह भी ना थी

कदम बढ़ते रहे मंज़िल की और
अब गुमशुदा मंजिल भी ना थी

दर्द कागज़ पर सजाते भी कैसे
जब कलम में स्याह ही ना थी

ज़िंदा थे मर कर भी जाते कहाँ
जब कब्र में जगह ही ना थी

कबूल था उनका रुस्वा हो जाना
कर्ज में थे, उनके माफ़ी ही ना थी

जब खंज़र था हाथों में रखा हुआ
कांटे भरे गुलाब की जरूरत ना थी

भूपेंद्र रावत
11।09।2017

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