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3 Sep 2017 · 1 min read

गीत

हृदय में मिले थे तुम्हीं गीत बनकर
चले तुम गए दृग में आँसू सजाकर

बस गये हो तुम सितारों में जाकर
यादों में आकर बरसने लगे हो
जब से गए रूठी तब से बाहारें
कलियाँ नहीं मुस्कुराती है खिलकर
हृदय में मिले थे तुम्हीं गीत बनकर

तुम्हें ढूँढ पाते न आँसू हमारे
हमें रोक पाते न बंधन तुम्हारे
राह मे रोज दृग को बिछाए हुए हैं
चले क्यों गए मुझसे नाता छुड़ाकर
हृदय में मिले थे तुम्हीं गीत बनकर

प्रेम से न बढकर कोई भावना है
न बिरहा से उपर कोई यातना है
आपका प्रेम हीं है बची एक थाती
इसी प्रेम अग्नि में जीती हूँ जलकर
हृदय में मिले थे तुम्हीं गीत बनकर ।

प्रमिला श्री ( धनबाद )

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