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30 Aug 2017 · 2 min read

क्या औचित्य है हिन्दी दिवस का ?

आज हम भारत वासियों को अंग्रेजों की पराधीनता से मुक्ति प्राप्त किए हुए 70 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। इतने लम्बे अंतराल के पश्चात् भी हम “अंग्रेजों” की गुलामी से ही मुक्त हो पाए हैं “अंग्रेजी” भाषा की गुलामी से नहीं।
हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के शब्दों में –
“निज भाषा उन्नति अहै सबै उन्नति को मूल,
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय के शूल।
अंग्रेज़ी पढ़ि के जदपि सब गुन होत प्रबीन,
पे निज भाषा ज्ञान के रहे हीन के हीन।”

इसके बावजूद भी आज भी भारत में हिन्दी भाषा बोलने में अपनी तौहीन समझने वालों को कमी नहीं है। मानसिक गुलामी, भाषागत गुलामी तथा अपनी भाषा बोलने वालों को हेय दृष्टि से देखना विदेशी भाषा के गुलामों की आदत बन चुकी है। देश का संपूर्ण संभ्रांत वर्ग आज भी अपनी संतान को उच्चस्तरीय अंग्रेज़ी विद्यालयों में ही शिक्षा दिला रहा है । उन्हीं का अंधानुकरण करते हुए मध्यमवर्गीय तबका भी अपने बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम की शिक्षा देने और बच्चों से अंग्रेजी बोलने में अपनी शान समझता है। तभी तो अपने ही देश में अपनी ही भाषा को उसका सही स्थान दिलाने हेतु आज तक विशेष प्रकार से “हिन्दी दिवस” “हिन्दी सप्ताह” व “हिन्दी पखवाड़े” मनाने की आवश्यकता पड़ रही है। क्या अन्य किसी देश में ऐसा कभी हुआ है ? यह हमारे देश की एवं हमारी प्यारी हिन्दी भाषा के लिए एक विडंबना नहीं तो और क्या है ?
मेरा अनुरोध है समस्त हिन्दी प्रेमी भारत वासियों से कि वे हिन्दी के प्रति मेरे दर्द को महसूस कर रहे हों तो अपने अपने क्षेत्रों में हिन्दी के उत्थान हेतु अनवरत सुप्रयासों में जुटे रहें हताश न हों। वह दिन दूर नहीं जब हिन्दी की विजय पताका भारतवर्ष ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में फहराएगी।

आओ हम अपनी प्रिय हिन्दी भाषा को उसका सही एवं सम्मान जनक स्थान दिलाने के लिए कृतसंकल्प होकर आगे बढ़कर अपना योगदान दें ताकि हमारी भाषा रूपी माता को अपने ही घर में अपने ही सपूतों से समुचित स्थान मांगने को न तरसना पड़े क्योंकि – –
कोटि-कोटि कंठों की भाषा,
जन जन की मुखरित अभिलाषा।
हिन्दी है पहचान हमारी,
हिन्दी हम सब की परिभाषा।।

राष्ट्र भाषा हिन्दी की जय हो!

—–रंजना माथुर दिनांक 24/08/2017
(मेरी स्व रचित व मौलिक रचना)
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