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27 Aug 2017 · 1 min read

"प्रेम रोग मैंने पाया है" (गीत)

“प्रेम रोग मैंने पाया है”
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मौन प्रीत का प्याला पीकर
उर में प्रियवर तुम्हें बसाया।
अधरों पर गीतों की सरगम
बना मीत ने तुम्हें सजाया।
चंचल चितवन रूप तुम्हारा-
मतवाले मन को भाया है।
प्रेम रोग मैंने पाया है।।

तुम बिन सूना जीवन मैंने
कितनी तन्हा रात जिया है।
अंतर्मन की पीड़ा सह कर
हर पल इस पर वार दिया है।
वीरानी राहों में मेरी-
देखो सन्नाटा छाया है।
प्रेम रोग मैंने पाया है।।

नयनों से आँसू की दरिया
जाने कितनी बार बही है।
आघातों के वार मिले जब
दिल ने उनकी मार सही है।
कुछ भी समझ नहीं पाता हूँ-
पतझड़ मौसम क्यों आया है?
प्रेम रोग मैंने पाया है।।

डॉ. रजनी अग्रवाल” वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी।

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