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26 Aug 2017 · 1 min read

**बहू हमारी 'गृह लक्ष्मी'**

* रोशन की बाबुल अँगनाई,
उषा सी प्रभात तुम लाईं,
कलरव गीत सुनाया तुमने, किलकारी जब कंठ समाई।

* बेटी का फर्ज़ सहज निभाया, अब अपने घर भी आना है,
दोनों सदनों का मान है रखकर, तुम्हें अपना फर्ज़ निभाना है।

* खुशियाँ बरसानी तुमने हैं,
अपना घर स्वर्ग बनाना है,
आदर-सत्कार बड़ों को देकर, अपना सर्वस्व बनाना है।

* बहू नहीं तुम बेटी बनकर, आओगी संग-साथ हमारे,
आने नहीं हम देंगे आँसू,
बाबुल की आँखों में भी तब।

* खुश होकर जब तुम आओगी, खुशियाँ ही संग में लाओगी,
हमें पता है तुम घर में,
सभी अपने फर्ज़ निभाओगे।

* मात-पिता की छवि मिलेगी सास-ससुर के प्यार में,
बरसेगा भाई-बहन का प्यार,
नंद देवर के संग-साथ में।

* तंडुल कलश सजा रखा है,
द्वार बाँधनी बंधी भवन में,
गृह प्रवेश करने को आतुर, कुमकुम,मेहंदी,सुरभी के संग।

*कुमकुम के शुभ कदमों के संग, सबके रंग में मिल जाना है,
घी,मेहंदी के छापो के संग,
भंडार समृद्धि बनाना है।

* बाती दीपक के संग रहकर, जग रोशन जैसे करती है, अंधकार को भी जैसे वह,
प्रकाश किरण से भरती है।

* तुमको वैसी प्रभा है बनना, गृह प्रवेश इसी सोच से करना, धन-धान्य बरसाना है,
लक्ष्मी स्वरूपा बनकर आना है।

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