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15 Sep 2016 · 1 min read

छः मुक्तक

छः मुक्तक
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
1-
तड़पता हूँ मैँ रोजाना सनम तेरी ही चाहत मेँ
मगर ये तारिखोँ पे तारिखेँ खलतीँ मुहब्बत मेँ
कभी तो जानेमन तुमसे मिलन का फैसला आये
मुकदमा रोज चलता है मेरे दिल की अदालत मेँ
2-
नहीँ ये जिँदगी मेरी किताबोँ की कहानी है
है ग़म जितना कलेजे मेँ कहाँ आँखोँ मेँ पानी है
जो बातेँ जानलेवा हैँ बयाँ होतीँ नहीँ यारोँ
कि भीतर दर्द के जलवे कहाँ बाहर निशानी है
3-
रोग दिमागी ज्वर कि भाई जिन बच्चोँ को खाता
सोचो कैसे जिन्दा रहतीँ उन बच्चोँ की माता
जिन्दा लाश बने फिरतीँ हैँ आँखेँ हैँ पथराईँ
पर मस्ती मेँ झूम रहे हैँ मेरे भाग्य विधाता
4-
जैसे खुजली में या हम किसी दाद में
दिल को खुजला रहे हैं तेरी याद में
भेज दो प्यार के नीम की तुम दवा
तुम खिलाना मिठाई कभी बाद में
5-
लबोँ पे लब के अंगारे इरादोँ मेँ क़यामत है
जले शोला बदन तेरा कि आँखोँ मेँ इजाज़त है
बड़ा तड़पा हूँ जानेमन अकेले मेँ जुदाई मेँ
जरा पहले कहा होता हमेँ तुमसे मुहब्बत है
6-
धरती कैसे सह पायेगी इतना बोझ अपार
अगर उजाले का करता है अंधेरा व्यापार
सोच रहा हूँ हो सकता क्या सूरज मेँ भी दाग?
जैसे दाग बटोरे चलती है दागी सरकार

– आकाश महेशपुरी

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