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13 Aug 2017 · 1 min read

शहर में उड़ती हुई ख़बर आयी है

शहर में उड़ती हुईएक ख़बर आयी है
कुछ मासूमों ने अपनी जान गवाई है

कही सफ़ेद कपड़ो में दाग ना लग जाए
इसलिए आपातकाल में मीटिंग बुलाई है

आज तक जो सो रहे थे चैन की नींद
आरोपो की बरसात फिर हो आयी है

नाज़ाने कितने माँ बाप ने रोते हुए
अपने ज़िगर के टुकड़े को दी विदाई है

आज फिर सो कर जग रहे होंगे कुछ भाई
सहिषुणता के नाम पर कितनी आग लगाई है

किस मोड़ पर खड़े है घर वापसी के मुद्दे
मासूमों की लाश आज किसी को नज़र नही आयी है

माँ बाप लिपट कर रो रहे अपने बच्चो से
कुछ ने राजनीति के तवे में रोटी सिकाई है

कुछ चुनिंदा कलम भी शांत हो आई है
सियासत की रूह में उनकी क़लम ने डुबकी लगाई है

उज्जवल भारत का नारा कैसे दोगे अब
जब जलते हुए चिराग़ की लौं तुमने ही बुझाई है

टूट गया ख़्वाब जो देखा था उन आँखों ने
उनके सहारे की लाठी फ़िर टूटी हुई पाई है

भूपेंद्र रावत
13।08।2017

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