Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
9 Aug 2017 · 1 min read

क्या मेरे बिना भी जिंदा रहे पा रहे हो तुम

उन्होंने मुझसे एक सवाल पूछा
मेरे बिना भी क्या जिंदा
रह पा रहे हो तुम

हमनें भी मुस्कुराते हुए
उनके दिए ज़ख्मो के दर्द को सिया
वो ताज्जुब हो गए
हमारे मुस्कुराते चेहरे को
ज़ख्म दिए थे उन्होंने इतने
हमें दुनिया से मिटाने को
हमने भी दर्द को अपने
भीतर ही छुपा लिया
वो देखते रहे गये
सिर अपना झुका लिया
सिर झुकाया जैसे उसने
मोती सारे बहा दिए
उस पगली ने भी अपने
दर्द सारे जता दिए
दर्द जता कर उस पगली ने
अपनी गलती को स्वीकार किया
वो बोली अनजाने में कैसा
मैंने अत्याचार किया
मैंने तो स्वार्थ की ख़ातिर
तुझको इंकार किया
और तुमने भी बिन बोले
ये सब स्वीकार किया
हमनें तो तेरी ख़ुशी की ख़ातिर
अपना बलिदान दिया
अपने सारे ज़ख्मो के दर्दो को
भीतर ही संहार किया

भूपेंद्र रावत
8।08।2017

Loading...