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8 Aug 2017 · 1 min read

सिमटती मोहब्बत

साल दर साल सिमटती मोहब्बत
इस कदर “आशुतोष”
दिल मे धुंआ रख लोग
वफ़ा ढूढ़ते हैं ।
कश्ती मझधार मे डूबी
तब किस्मत को बेवफा मान
तारनहार ढूढ़ते हैं ।
गिला किस्मत का नही
खुद की गई बेरुखी जिंदगी
अब वो ओस मे भी
तपन ढूढ़ते हैं ।।

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