देख सुदामा मीत को, नजरें फेरे श्याम
मित्रता दिवस पर
हुआ सुदामा सा कभी,कब किसका सत्कार।
कान्हा जैसा दूसरा,…..हुआ नही फिर यार।।
बना सुदामा मैं प्रभो,……खोजूं सत्य चरित्र ।
कलियुग में भी श्याम सा, सीधा सच्चा मित्र ।।
देख सुदामा मीत को , नजरे फेरें श्याम ।
बदल गये इस दौर में ,यारी के आयाम ।।
जब यारी की नीवं ही, . नफा और नुकसान ।
चले नही ज्यादा दिवस ,उनकी कभी दुकान ।।।
रहे वहीं तक मित्रता, . …रहे वहीं तक प्यार I
जब तक हो व्यवहार में, शामिल नही उधार II
मीत वही है ख़ास अब, है जो पूर्ण समर्थ I
बदल गये हैं वाकई , अब यारी के अर्थ II
लगे सामने यार के,अगर यार असहाय I
यारी वो यारी नहीं, यारी वो व्यवसाय II.
रमेश शर्मा