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2 Aug 2017 · 1 min read

चिन्तन

चिन्तन करने लगा हूं मै
उस जहान का
लौटा नही जहां से कोई
मै उस आसमान का ।

चिन्तन करने लगा हूं मै
हवा के उस झोंके का
दिखता नही एहसास कराता
अपने गर्म सर्द हो जाने का ।

चिन्तन करने लगा हूं मै
मृग की उस कस्तूरी का
ढूंढता फिरता है जिसको
मालिक खुद उस अद्भुत खुशबु का ।

चिन्तन करने लगा हूं मै
रचयिता है जो सृष्टि का
खेल बनाया कैसा उसने
हर जीव है भोजन इक दूजे का ।

राज विग

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