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29 Jul 2017 · 1 min read

मुक्तक

हुनर उनको जीने का आया नहीं है
अदब से जो ये सिर झुकाया नहीं है
भले कद है उनके फ़लक से भी ऊँचे
मगर उन दरख़्तों की छाया नहीं है

मोनिका “मासूम”
मुरादाबाद

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