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28 Jul 2017 · 1 min read

मौत का सामान ही तो है

आज का जानलेवा प्यार ही तो है
मेरी मौत का ये समान ही तो है

ये मौत फरेब हत्या साज़िश औऱ झूठ
हर रोज आता है अखबार ही तो है

सच्चाई की मौत पर रोज होती बहस
आज चैनल पर होता हंगमा ही तो है

जहाँ खबरें नेताओं की गुलाम हो गई
ऐसे आजकल के अखबार ही तो है

जहाँ नफरतों के बाजार है चारो ओर
ऐसा आज कल का समाज ही तो है

जहाँ बुर्जुर्गो की पगड़ी से होती है खिलवाड़
ऐसा हमारे शहरो का एक संस्कार ही तो है

इज्जत मर्यादा हया कुछ ये कुछ भी नही
ऐसा लफंडर आज का समाज ही तो है

कभी गिरती है तो कभी उठती है जनाब
औऱ कुछ नही जनाब ज़िन्दगी ही तो है

हर रोज की भागदौड़ में कुछ पल का सुकून
और कुछ नही सप्ताह में रविवार ही तो है

गलत है लेकिन फिर भी बिल्कुल सही है
ये औऱ कोई नही हमारा घमंड ही तो है

जो कण कण में है उसे मंदिर में बताते है
ऐसे चंद लोग बनिया का व्यापार ही तो है

जहाँ बहन बेटी की आबरू सुरक्षित नही है
ऋषभ विश्व गुरु कहलाने वाला वो ही तो है

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