Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
18 Jul 2017 · 1 min read

मदमस्त वो बचपन

अल्हड़पन मदमस्त वो मौसम
झंझावत न कोई परेशानी
खिला – खिला मुख रौशन चेहरा
बचपन की वो अमिट कहानी।
कही पे रंक कही हम राजा
जी चाहे वो करें मनमानी,
इस मन पे कोई बोझ नहीं
ना शर्म से होते पानी- पानी।
तेजोमय मुख सूर्य सरीखा
उकताहट की न कोई निशानी,
गौरैयों के पीछे- पीछे
भागमभाग करें मनमानी।
विलुप्त हुआ वो प्यारा बचपन
मन: पटल से मीटी निशानी,
कठिन आपदा झेला हस के
क्षणिक विपदा न झेले जवानी।
आज मुड़ा फिर देखा पीछे
ममतामयी वो मधुरीम बानी,
थपकी देती स्नेहमयी वो
दादी की अनकही कहानी।
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”

Loading...