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13 Jul 2017 · 1 min read

सौभाग्य" (लघु कथा)

आज बेटे की ईन्जिनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने पर उसके दीक्षान्त समारोह में उपस्थित माँ अपने अतीत में गोते लगाने लगी।आज उसे देखने लड़का व उसका परिवार आ रहा था,खबर थी कि वो इन्जिनियर है और किसी अच्छी फर्म में कार्यरत,देखने दरशने में अच्छा खासा,नापसंद करने का कोई कारण नज़र नहीं आया अतःघर वालों ने तुरत फुरत सगाई कर कुछ ही दिनों में धूमधाम से शादी कर ससुराल विदा कर दिया।
आँखों में सपनों का संसार सजाये वो बहुत खुश थी।
सुनहरे आकाश में उड़ान भरने के लिए डैनों मं कुलबुलाहट शुरु होने ही लगी थी कि झूठ की कलई उतर गई।
सच खुला तो भाई उसे सम्मान के साथ झूठ के दलदल से निकाल वापस ले आये।
तभी तालियों की गड़गड़ाहट से उसका तंद्रा टूटी,मंच पर उसकी कोख में पला अंकुर डिग्री ग्रहण कर रहा था।
मायके का साथ ,आत्मसम्मान और आत्मविश्वास झूठ से लड़ने की ताकत…
अपने सौभाग्य पर गर्व से मस्तक और ऊँचा हो गया उसका ।
अपर्णाथपलियाल”रानू”
५ ०७ २०१७

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