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3 Jul 2017 · 1 min read

धरती

चारो ओर सिर्फ बदसूरत सी थी धरती
कही धूल तो कही धुंआ सी थी धरती
बड़ी बड़ी दरारों से भरी थी ये धरती
सिर्फ सोने के रंग में रंगी थी ये धरती
न कोई उमंग थी और न ही कोई तरंग
उर्मिला के जीवन सी खामोस थी धरती
सूरज के ताप से बड़ी बेहाल थी धरती
लगती थी कोई शमसान सी है ये धरती
किसी ने पहली बार देखी थी ये धरती
वो बोला शायद कुदरत की भूल है धरती
पर ये जुलाई अनोखा बदलाव ले आई है
कुछ रंगहीन बूंदों में ये कई रंग भर लाई
जहाँ सिर्फ गर्मी से दरारे फटी हुई थी
वहाँ अंकुरण की नई सोगत लाई है
बड़ी अजीब कुदरत की सी कारीगरी है
जो रंग छिड़के बिना रंगीन हो गई है धरती
जो चंबल चांदी सी चमकती थी बीहड़ में
आज हरियाली के बीच सोना सी हो गई
ये चंबल की कीमती धरती हीरा सी गई है
उसी में लाल नीले बदलो को शिर पर सजाये
किसी नववधू सी जाँच रही है मेरी धरती
बच्चे की तोतली जुबाँ में हँस रही है धरती
कुरूपता एकरंगता गर्मी को त्याग कर के
इंद्रधनुषी रंगों में सज धज गई है ये धरती
बरसात के आगमन से परिवर्तित हो गई धरती
बैरंग बूँद से लाल गुलाबी हरे पीले जमुनी
अनगिनत रंगों से भर गई है श्यामली धरती
जामुन से जुबाँ को जमुनी कर रही है धरती
विष देकर नही मीठे रस से देवत्व दे रही है
कंठो को जामुन से नीलकंठ कर रही है धरती

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