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11 Sep 2016 · 1 min read

मुक्तक - 2

चुल्हों में सभी के नहीं रोटियाँ
बदन पे सभी के नहीं धोतियाँ।
हजारों बिना रोटियों के मरे
करों में सभी के नहीं बोटियाँ।।

भाऊराव महंत “भाऊ”

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