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1 Jul 2017 · 1 min read

हम स्वयं के बल रहे...

रास्ते पर बिनु डरे हम चल रहे,
इसलिये बस दोस्तों को खल रहे।
०००
साथ पाया ना कभी उनका मगर,
सच कहूँ तो हम स्वयं के बल रहे।
०००
सूर्य बनने की हिमाक़त की न पर,
आँधियों में दीप सम हम ज़ल रहे।
०००
देख कर सच की प्रगति वह जाने क्यों,
हाथ अपने बैठे-बैठे मल रहे।
०००
काश! गंगा कोई निकले प्रेम की,
नित ‘सरस’ हिमगिरि सदृश हम गल रहे।
*सतीश तिवारी ‘सरस’,नरसिंहपुर (म.प्र.)

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