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25 Jun 2017 · 1 min read

रोजाना फिर ईद है हर महिना रमजान

रोजाना फिर ईद है, हर महिना रमजान !
हमने अंदर का अगर,मार दिया शैतान !!

जाते-जाते भी यही, सिखा गया रमजान !
होती है हर धर्म की, …कर्मों से पहचान !!

आंसू जिसने दीन का,..लिया हमेशा चूम !
रहमत से रमजान की,हुआ न वो महरूम !!

भूखे के मुंह में कभी , दिया नहीं इक ग्रास !
फिर तो तेरा व्यर्थ है, किया हुआ उपवास !!

रोजा रखे रसूल तो, ..राम रखे उपवास !
अपना अपना ढ़ंग है,करने का अरदास!

एक करे है आरती, …….दूजा पढ़े अजान !
दोनों प्रभु की वन्दना , प्रभु का ही गुणगान !!
रमेश शर्मा.

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