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17 Jun 2017 · 1 min read

मुक्तक

मुक्तक

(१)अधरों पर मुस्कान खिली जब
आँगन देखी फुलवारी।
उन्मादित नयना हर्षाए
द्वार हँसी जब किलकारी।।

(२)ढह गए प्यार के सपने बिछे जब शूल राहों में
जली अरमान की बस्ती रहे ना फूल बाहों में।
मरुस्थल बन गया जीवन सुलगती रेत छाई है
कहाँ जाऊँ बतादे तू रुदन दिल में समाई है।।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी (मो.-9839664017)

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