Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Dashboard
Account
5 Jun 2016 · 1 min read

गीतिका

गीतिका
शनै: से पुष्प फिर से मुस्कुराया।
हवा ने फिर नया इक राग गाया।

मधुर मुख माधुरी मोहित किये थी।
निशाकर देख अतिशय खिलखिलाया।

भ्रमर भ्रमवश समझ कर फूल देखो।
वदन की गंध पर ही मंडराया।

वसंती वेश पीले शर्म से हैं।
उसी संसर्ग से महकी है’ काया।

सुखद दर्शन ये’ दुर्लभ भी बहुत है।
उतर भू पर शरद का चन्द्र आया।

प्रिये! है प्रेम का पथ ये कठिन पर।
अडिग विश्वास से लेकिन निभाया।

‘इषुप्रिय’ आज मत रोको जरा भी।
करो रसपान दृग ने जो पिलाया।

अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ,सबलगढ(म.प्र.)

Loading...