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14 Jun 2017 · 1 min read

"बरसो रे मेघा "

कहां लुप्त हो गई है अब,
बहती सरिता की अविरल धारा ||
नदी किनारे रहने वाले जीवों का,
दुविधा में हो गया जीवन सारा ||

वन स्मृतियाँ कुम्हला गई है,
हो गया मायूस जग सारा ||
पानी पीने को तरस गये है,
मेघा भी नहीं बरस रहे है ||

पशु – पक्षी हो गए वीरान,
जीना अब हो गया बेहाल ||

किसने रोका इस धारा को,
बढा के पारा जग में सारा ||
कर दिया धरा को पराया,
हो गया जग भी भरमाया ||

बह जायेगा जग सारा,
पिघलकर इस दारुण पारा में |

तन प्यासा , मन प्यासा है,
इस जग के हर प्राणी की अाशा ,
फिर से छाएं काले मेघा,
बरसे धरा पर घनघोर घटा सा,
ऐसी है मेरी प्रत्याशा ||

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