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13 Jun 2017 · 1 min read

पहली बारिश

खिलखिलायी है बहार मोसम सुहाना आ गया…
सबके मन को रिझाने वाला तराना आ गया…

पहली बूँदे बारिश कि जब धरा को छु जाती है..
सोंधी खुशबु मिट्टी की मन को महका जाती है..
घनघोर घटा की काली चादर अम्बर मे छा जाती है..
सनसन करती तेज बयार तप से राहत दे जाती है..
सूखी धरती की प्यास बुझाने लो उसका परवाना आ गया…
खिलखिलायी है….
सबके मन को…….

कही पे कोयल की कूहु कही पपीहा बोल रहा…
बारिश के स्वागत मे देखो मोर भी अब है नाच रहा…
गांव भी खुशहाल हुए है जंगल मे भी रोनक है..
धरापुत्र भी खेत जोतने की तैयारी कर रहा…
वृक्षारोपण करने का समय निराला आ गया…
खिलखिलायी है….
सबके मन को…….

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